आदि शंकराचार्य अद्वैत वेदांत के प्रणेता और चारों मठों के संस्थापक थे। उन्होंने भारतीय धर्म-दर्शन को देश-दुनिया में स्थापित करने में महती भूमिका निभाई थी। इनका जन्म केरल
में 788 ई. में वैशाख शुक्ल पंचमी के दिन हुआ था। इस दिन को यादगार बनाने के लिए इसे भारतीय दार्शनिक दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस हेतु मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत संचालित भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली विभिन्न संस्थानों को अनुदान देती है। वर्ष 2019 में देश के कुल 28 संस्थानों को बीस-बीस हजार का अनुदान दिया गया है। इनमें बिहार से एकमात्र स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र विभाग, बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा का चयन हुआ है। तदनुसार
शंकराचार्य जयंती के अवसर पर आगामी 9 मई को भारतीय दार्शनिक दिवस का आयोजन किया जाएगा। यह जानकारी असिस्टेंट प्रोफेसर (दर्शनशास्त्र) सह जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर ने दी। उन्होंने इसके लिए आईसीपीआर के अध्यक्ष सुप्रसिद्ध दार्शनिक प्रोफेसर डाॅ. एस. आर. भट्ट एवं सदस्य-सचिव प्रोफेसर डाॅ. रजनीश कुमार शुक्ल  के प्रति आभार व्यक्त किया है।


दर्शनशास्त्र विभाग में पहली बार होगा यह आयोजन
डाॅ. शेखर ने बताया कि स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र विभाग में  में पहली बार भारतीय दार्शनिक दिवस का आयोजन किया जाएगा। इसके तहत कई विद्वानों के व्याख्यान होंगे। भागलपुर लोकसभा क्षेत्र के पूर्व सांसद एवं जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय, राजस्थान के पूर्व कुलपति प्रोफेसर डॉ. रामजी सिंह  वेदांत की वैश्विक दृष्टि विषय पर व्याख्यान देंगे। इसके अलावा भारतीय समाजवाद पर अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष डाॅ. जटाशंकर (इलाहाबाद) का व्याख्यान होगा। स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र विभाग, तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर के पूर्व अध्यक्ष डाॅ. शंभु प्रसाद सिंह गाँधी का नैतिक दर्शन विषयक व्याख्यान प्रस्तुत करेंगे।

*नैक मूल्यांकन में मदद*
विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभाग के अध्यक्ष सह मानविकी संकायाध्यक्ष डाॅ. ज्ञानंजय द्विवेदी ने बताया कि उक्त कार्यक्रम के आयोजन से नैक मूल्यांकन में मदद मिलेगी। उन्होंने बताया कि आईसीपीआर ने लगातार दूसरी बार विश्वविद्यालय को भारतीय दार्शनिक दिवस के आयोजन हेतु अनुदान दिया है। यह विश्वविद्यालय के लिए गौरव की बात है।

*पहले भी मिला था अनदान*
मालूम हो कि वर्ष 2018 में ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय को भी भारतीय दार्शनिक दिवस के आयोजन हेतु बीस हजार रुपए अनुदान प्राप्त हुआ था। तदनुसार वहाँ 21 अप्रैल, 2018 को आधुनिक सभ्यता का संकट और वेदांती समाधान विषयक व्याख्यान का आयोजन किया गया था। इसके मुख्य वक्ता भागलपुर लोकसभा क्षेत्र के पूर्व सांसद एवं जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय, राजस्थान के पूर्व कुलपति प्रोफेसर डॉ. रामजी सिंह ने भाग लिया। कार्यक्रम के उद्घाटनकर्ता कुलपति डॉ. अवध किशोर राय एवं मुख्य अतिथि मानविकी संकायाध्यक्ष डॉ. ज्ञानन्जय द्विवेदी थे। अध्यक्षता  तत्कालीन प्रभारी प्रधानाचार्य डॉ. परमानंद यादव ने किया था।

इसके अतिरिक्त आईसीपीआर ने ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय को व्याख्यान-माला के लिए भी दस हजार रुपए अनुदान दिया था। उससे मार्च 2018 में चार व्याख्यान आयोजित किए गए थे। 20 मार्च, 2018 को दो व्याख्यान आयोजित हुआ था। पहला व्याख्यान बिहार दर्शन परिषद् के पूर्व अध्यक्ष डाॅ. प्रभु नारायण मंडल (भागलपुर) ने दिया। उनका विषय 'धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा' था। दूसरा व्याख्यान 'धार्मिक सहिष्णुता एवं सर्वधर्म समभाव' विषय पर पी. के. राय मेमोरियल काॅलेज, धनबाद में दर्शनशास्त्र विभाग के अध्यक्ष डॉ. नरेश कुमार अम्बष्ट का हुआ था।

अगले दिन 21 मार्च, 2018 को भी दो व्याख्यान आयोजित किए गए। 'वेदांती समाजवाद' विषय पर अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष डाॅ. जटाशंकर (इलाहाबाद) एवं 'सीमांत नैतिकता और सामाजिक न्याय' विषय पर पटना विश्वविद्यालय, पटना के पूर्व अध्यक्ष डाॅ. रमेशचन्द्र सिन्हा का व्याख्यान हुआ। दोनों दिन उद्घाटनकर्ता कुलपति प्रो. (डाॅ.) अवध किशोर राय और  मुख्य अतिथि प्रति कुलपति प्रो. (डॉ.) फारूक अली थे।

*कौन हैं आदि शंकर*

आदि शंकराचार्य ने वेद-वेदांतो के ज्ञान को देश-दुनिया में फैलाया। उनका प्रमुख उपदेश है ब्रह्म एकमात्र सत्य है। जगत मित्थया है। ब्राह्म एवं जीव में कोई भेद नहीं है।

आदि शंकराचार्य ने बहुत कम उम्र मे, तथा बहुत कम समय मे अपने कार्य के माध्यम से, अपने जीवन के उद्देश्य को पूर्ण किया। आपके जीवन के बारे मे यहा तक कहा गया है कि आपने महज दो से तीन वर्ष की आयु मे सभी शास्त्रों, वेदों को कंठस्थ कर लिया था। इसी के साथ इतनी कम आयु मे, भारतदर्शन कर उसे समझा और सम्पूर्ण हिन्दू समाज को एकता के अटूट धागे मे पिरोने का अथक प्रयास किया और बहुत हद तक सफलता भी प्राप्त की जिसका जीवित उदहारण उन्होंने स्वयं सभी के सामने रखा और वह था कि आपने सर्वप्रथम चार अलग-अलग मठों की स्थापना।   वेदान्त मठ इसे श्रंगेरी रामेश्वर दक्षिण भारत में स्थापित किया गया। गोवर्धन मठ जोकि, दूसरा मठ है, जिसे जगन्नाथपुरी अर्थात् पूर्वी भारत मे, स्थापित किया गया। शारदा या कलिका मठ भी कहा जाता है जोकि, तीसरा मठ है जिसे, द्वारकाधीश अर्थात् पश्चिम भारत मे, स्थापित किया गया। ज्योतिपीठ मठ – ज्योतिपीठ मठ जिसे बदरिकाश्रम भी कहा जाता है जोकि, चौथा और अंतिम मठ है, जिसे, बद्रीनाथ अर्थात् उत्तर भारत मे, स्थापित किया गया।
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